what is section 497 in Hindi
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What is section 497 in IPC ?
section 497 क्या है
Section 497 in IPC (Indian Penal Code)
हद है! जिन्हें कानून का क, ख, ग भी नहीं पता है वो लोग भी इस पर जोक्स बना रहे हैं.
आइये पहले धारा 497 को को समझने की कोशिश करते हैं......
"भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 497 के अनुसार ..." यदि कोई पुरूष यह जानते हुये भी कि महिला किसी अन्य व्यक्ति की पत्नी है ...और उस व्यक्ति की सहमति या मिलीभगत के बगैर ही महिला के साथ यौनाचार करता है तो वह परस्त्रीगमन के अपराध का दोषी होगा. यह बलात्कार के अपराध की श्रेणी में नहीं आयेगा. इस अपराध के लिये पुरूष को पांच साल की कैद या जुर्माना अथवा दोनों की सजा का प्रावधान था."
यह कानून कह रहा है कि यदि कोई पुरूष किसी विवाहित महिला से उसकी सहमति से यौन संबंध बनाता है तो इसमें अपराधी सिर्फ और सिर्फ " पुरूष" ... माना जायेगा. इसके पीछे तर्क यह है कि महिलाओं को पब्लिक रिलेशन का कम अनुभव होता है. वो भोली- भाली होती हैं ...और जो व्यभिचार ( अवैध संबंध ) उसने किया है उसके परिणाम को नहीं समझ सकी..... दूसरे पुरूष ने उसे बरगलाया, ....फुसलाया और अपने जाल में फँसा लिया..... इसलिए हर हाल में "पुरूष" ही दोषी है.
हो सकता है.... जब 158 वर्ष पहले जब भारतीय दण्ड संहिता, 1860 का निर्माण हुआ था तब अधिकांश महिलाओं को शिक्षा और रोजगार का अवसर आज जैसा उपलब्ध नहीं था. सायद वो सचमुच व्यभिचार ( अवैध संबंध) के परिणाम को समझ पाने में अक्षम रहीं हों,... इसलिए पर पुरूष को दोषी मानकर उसे सजा दी जाती थी. ...
लेकिन आज जब समय इतना बदल गया है, महिलाएं अपने जीवन के सारे फैसले खुद लेने में सक्षम हैं. ऐसे में भी अगर वो किसी से अपनी मर्जी से यौन संबंध बना रही हों और कानून उसे निर्दोष माने और पुरूष को शातिर अपराधी , .
मेरी नजर में ...तो ये गलत है. या तो दोनों के लिए सजा का प्रावधान होना चाहिए या दोनों को ही सजा नहीं मिलनी चाहिए.
मेरी नजर में ...तो ये गलत है. या तो दोनों के लिए सजा का प्रावधान होना चाहिए या दोनों को ही सजा नहीं मिलनी चाहिए.
सर्वोच्च न्यायालय ने भी कानून की उस गलती में सुधार करते हुए उसे( 497 को ) असंवैधानिक घोषित कर दिया है....
कल के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सिर्फ और सिर्फ ... इतना मतलब है कि , " अब सिर्फ पुरूष को अपराधी बनाकर पाँच साल के लिए कैद नहीं किया जा सकता है."
ये एक अच्छा फ़ैसला है, गलत तो पहले हो रहा था.
न्यायालय ने व्यभिचार को कोई पुण्य कर्म घोषित नहीं किया है, ये आज भी व्यभिचार ही है. ....
आज भी व्यभिचार विवाह-विच्छेद करने के लिए एक सशक्त आधार है. अगर आपका पार्टनर व्यभिचार में लिप्त है तो आप उससे इस ग्राउंड पर आसानी से विवाह-विच्छेद कर सकते हैं. सर्वोच्च न्यायालय अगर आप से ये अधिकार छिनता तो अनर्थ करता और व्यभिचार को प्रोत्साहित करता, पर उसने ऐसा कुछ भी नहीं किया है.
हम आदरणीय सुप्रीमकोर्ट के फैसले का स्वागत करते हैं
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Reviewed by Riddhi Singh Rajput and admins
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8:47 AM
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