shayari










"एक टुकड़ा ही सही पर आसमां मेरा भी था,
उन दिनों की बात है जब ये जहाँ मेरा भी था।

इक जगह ठहरूँ ये आदत थी कहाँ मुझमें कभी,
वरना तिनकों का सही इक आशियाँ मेरा भी था।

वो बुझाए मैं जलूं ये कशमकश दोनों में थी,
इम्तिहाँ उसका तो था ही इम्तिहाँ मेरा भी था।

बोलता है बोलियाँ जो सैकड़ों अंदाज़ में,
वो परिंदा अरसा पहले हमजुबां मेरा भी था।

ढूँढने वालों के नकसे निशान मिले जिस रेत पर,
गौर से देखा तो उसपे इक निशाँ मेरा भी था।

आग दोनों ही तरफ़ थी और डर था ये मुझे,
उस धधकती आग के घर दरमियाँ मेरा भी था।

बेख़ुदी में उम्र मैंने जब अकेले काट ली,
तब लगा कोई न कोई मेहरबां मेरा भी था।"
shayari shayari Reviewed by Riddhi Singh Rajput and admins on 12:42 PM Rating: 5

No comments:

Theme images by Jason Morrow. Powered by Blogger.