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 success story  of Malvika 



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13 साल की उम्र में नहीं रहें हाथ इसके बावजूद ऐसा कारनामा कर दिखाया अब्दुल कलाम हो गए थे मिलने को बैचेन..!!
मालविका अय्यर जब महज 13 साल की थीं तभी 2002 में अचानक हथगोला फटने से उसकी बाहें उड़ गई थीं। उस समय वह अपने माता-पिता के साथ राजस्थान के बीकानेर में रहती थीं। इस घटना में उनकी टांगों में भी पक्षाघात हो गया था। मगर जिस घटना में उनकी मौत भी हो सकती थी उसी घटना से जिंदगी जीने का उनका नजरिया बदल गया।
हालांकि उस सदमे से उबरने में उन्हें कई साल लग गए लेकिन उन्होंने न सिर्फ अपनी जिंदगी को दोबारा वापस पटरी पर लौटाया बल्कि वह अन्य अशक्तों की जिंदगी में बदलाव लाने के लिए एक अग्रदूत बन गईं।
चेन्नई की इस 29 वर्षीय सामाजिक कार्यकर्ता ने अपनी इच्छाशक्ति से अपनी विकलांगता के सदमे पर विजय पा लिया। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने इसी साल मार्च में उन्हें प्रतिष्ठित नारी शक्ति पुरस्कार-2017 से सम्मानित किया।
वह एक अभिप्रेरणा प्रदान करने वाली वक्ता बन गई हैं जिनसे प्रेरणा पाकर अमेरिका, नार्वे और दक्षिण अफ्रीका समेत दुनिया के अन्य देशों में अशक्तों की जिंदगी में आशा की किरणों का संचार हुआ।
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☯️शरीर के दर्द को किया नजरअंदाज☯️
मालविका ने दिए एक साक्षात्कार में बताया, “मैं राजस्थान के बीकानेर में पली-बढ़ी, जहां मेरे पिता प्रदेश के जलापूर्ति विभाग में इंजीनियर थे। यह घटना 26 मई साल 2002 को हुई जब मैं 13 साल की थी और नौवीं कक्षा में पढ़ती थी।
मालविका ने घटना को याद करते हुए कहा, “मैं घर के गराज में कुझ ढूंढ़ रही थी। अनजाने में मैंने एक ग्रेनेड हाथ में उठा लिया जो फट गया। इसमें मेरी बांहें उड़ गईं और टांगें बुरी तरह जख्मी हो गईं।
बीकाने की आयुधशाला में जनवरी 2002 में आग लगी थी, जिसमें कुछ गोले आस-पास के इलाकों में फैल गए थे। उन्हीं में से एक के फटने से मालविका को अपनी बाहें गंवानी पड़ी।
वह करीब 18 महीने तक बिस्तर पर पड़ी रहीं। उनकी टांगों में कई सर्जरी हुई, जिससे उन्हें पक्षाघात के दौर से गुजरना पड़ा। साथ ही, उनकी कृत्रिम बाहें भी लगवाई गई थीं। इतनी कम उम्र में दारुण शारीरिक पीड़ा झेलने के बावजूद मालविका जिंदगी की चुनौतियों का सामना करने के लिए बेचैन थीं।


☯️विकलांगता के बावजूद बनीं राज्य की टॉपर☯️

वर्ष 2004 में 10वीं की परीक्षा में महज चार महीने बचे थे लिहाजा मालविका ने चेन्नई में एक निजी उम्मीदवार के रूप में तमिलनाडु सेकंडरी स्कूल लीविंग सर्टिफिकेट (एसएसएलसी) के लिए परीक्षा में शामिल होने का फैसला किया। वह अस्पताल में भर्ती होने के कारण 2002-03 में 9वीं की परीक्षा नहीं दे पाई थीं।
लिपिक की मदद से उन्होंने परीक्षा दी और विशिष्टता के साथ परीक्षा पास की। वह प्रदेश में टॉपर में शामिल थीं।


मालविका ने बताया, “मेरे बारे में अखबार में पढ़ने पर राष्ट्रपति ए.पी. जे. अब्दुल कलाम ने मुझे राष्ट्रपति भवन बुलाया। उन्होंने मुझसे मेरे कॅरियर की योजनाओं के बारे में पूछा और मुझे मिसाइल निर्माण के बारे में बताया।”
अशक्तता अधिकारों की कार्यकर्ता ने कहा, “बिना हाथ के बोर्ड परीक्षा देना और राष्ट्रपति कलाम से मिलना मेरे लिए प्रेरणादायी था, जिसके बाद ऐसा लगा कि मुझे कुछ खोने पर कभी बुरा महसूस नहीं करना चाहिए। इसके बाद मैंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।”
उसके बाद मालविका ने आगे की डिग्री दिल्ली के सेंट स्टीफन कॉलेज से अर्थशास्त्र में ली और उन्होंने दिल्ली से सामाजिक कार्य में मास्टर की उपाधि हासिल की। इसके बाद मालविका ने चेन्नई स्थित मद्रास स्कूल ऑफ सोशल वर्क से सामाजिक कार्य में एमफिल और पीएचडी हासिल की। उन्होंने अशक्तता से निपटने और इसके प्रति लोगों का नजरिया बदलने का प्रशिक्षण भी लिया।
मालविका ने कहा, “मैं बचपन में खेल, नृत्य और किशोर वय के मनोरंजक कार्यो में अच्छी थी। हाथ गंवाने और पैरों की निर्बलता से उबरना आसान काम नहीं था। लेकिन अशक्तता के प्रति लोगों का जो रवैया था, वह मेरे लिए शारीरिक अशक्तता से ज्यादा कष्टकारी था।”
उन्होंने अपना पहला सार्वजनिक व्याख्यान 2013 में चेन्नई में दिया और बताया कि उस घटना ने किस प्रकार हमेशा के लिए उनकी जिंदगी बदल दी। मालविका ने दुनिया के अनेक देशों से अशक्त लोगों के लिए बेहतर कानून और सुविधाओं की मांग की।
अपने व्याख्यान के माध्यम से मालविका समावेशन, अशक्तों के प्रति नजरिये में बदलाव, चुनावों में पहुंच जैसे मुद्दों को प्रमुखता से उठाती रही हैं। वह फैशन की दुनिया में भी इनकी पैठ बनाने पर जोर देती रही हैं।
मॉडल बनकर फैशन की दुनिया में अशक्तों की पहुंच की वकालत करने वाली मालविका ने बताया, “रोज मेरे पास दुनियाभर के देशों से लोगों के सैकड़ों संदेश आते हैं, जिनमें वे बताते हैं कि उन्होंने क्यों अपनी जिंदगी में कभी हार नहीं मानी। यह काफी उत्साह की बात है कि मैं लोगों की जिंदगी में बदलाव लाने के काबिल हूं।”
वह विश्व आर्थिक मंच की पहल ग्लोबल शेपर्स कम्युनिटी के चेन्नई केंद्र की सदस्य हैं, जो 30 साल से कम उम्र के लोगों को बदलाव लाने के लिए कार्य करने को प्रोत्साहित करती है। वह युवा विकास मामलों के संयुक्त राष्ट्र अंतर-एजेंसी नेटवर्क की सदस्य के रूप में विभिन्न महादेशों में अपने विचारों से लोगों को प्रेरणा प्रदान करती हैं।
संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय न्यूयॉर्क में उन्हें मार्च 2017 में व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया गया था।
उन्होंने बताया, “मैंने जब अपनी कहानी बताई तो अंतर्राष्ट्रीय प्रतिनिधियों ने सराहना करते हुए मेरा उत्साहवर्धन किया।”
मार्च में नारी शक्ति पुरस्कार प्राप्त करने वाली महिलाओं से बातचीत के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें ‘अद्भुत नारी’ बताया। मालविका ने बताया कि उस अवार्ड को पाकर महिलाओं और अशक्तों के लिए काम करने की उनकी इच्छाशक्ति बढ़ गई।
उन्होंने कहा, “लोगों के मनोभाव में परिवर्तन की जरूरत है, क्योंकि भेदभाव अशक्तों के लिए मुख्य बाधक है।”
मालविका ने कहा, “मुझे उम्मीद है कि युवाओं के लिए अशक्तता को समझने और दयाभाव व कलंक को समाप्त करने के मकसद से स्कूलों में एक पाठ्यक्रम शुरू करने में मैं सरकारी संस्थाओं और शैक्षणिक संस्थानों के साथ काम कर सकती हूं।“


-विभिन्न साक्षात्कारों पर आधारित।
always keep moving always keep moving Reviewed by Riddhi Singh Rajput and admins on 12:18 PM Rating: 5

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